बचपन

एक समय था…थी होठों पे मासूम सी मुस्कान
बचपन के सुनहरे पलों से सजी थी सुंदर सी एक दुकान

वक्त भी था अपने साथ और दोस्तों का मेला था
बस चारों ओर खुशियों ने.. घेरा एक डेरा था

वो भी क्या जमाना था जब हर कोई अपने पास था
बिताया सबके साथ वो हर एक पल कितना ख़ास था

ना वक़्त पे कोई पावंदी थी.. ना मिलने का कोई बहाना था
बस लिए हाथों में हाथ.. साथ चलते जाना था

जब ना था बोझ जिम्मेदारियों का.. बस कंधों पे छोटा सा बस्ता था
क्या बताऊ जनाब..सुकून के मामले में वो जमाना कितना सस्ता था