कितना अच्छा होता जो कोई धर्म ही ना होता
हर कोई अपने दिल में बस इंसानियत का बीज ही बोता
कितना अच्छा होता जो संसार में भेदभाव ना होता
फिर रोज- रोज के दंगो से इंसान कभी ना रोता
कितना अच्छा होता जो ये संसार ना बटा होता
एक-दूसरे को दबाने की जगाह एक-दूसरे के सहयोग को दौड़ता
कितना अच्छा होता जो ये पैसा ही ना होता
जिसके लालच में आकर इंसान अपनों को ना खोता
कितना अच्छा होता जो ना कोई मंदिर ना मस्जिद होता
पाता उसे तू खुद में ही, एक बार जो सच्चे दिल से खोजता
कितना अच्छा होता जो चारों ओर बस प्रेम ही प्रेम होता
ना नफरत का जन्म होता ना कोई किसी को कोस्ता